जन गण मन
जन गण मन,
भारत का
राष्ट्र गान है जो मूलतः
बाँग्ला में गुरुदेव
रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखा गया था । भारत का
राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् है ।
राष्ट्र गान के गायन की अवधि लगभग ५२ सेकेण्ड है । कुछ अवसरों पर राष्ट्र गान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है, इसमें प्रथम तथा अन्तिम पंक्तियाँ ही बोलते हैं जिसमें लगभग २० सेकेण्ड का समय लगता है। संविधान सभा ने
जन-गण-मन को भारत के राष्ट्र-गान के रुप में
२४ जनवरी, १९५० को अपनाया था। इसे सर्वप्रथम
२७ दिसम्बर, १९११ को
कांग्रेस के
कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। पूरे गान में ५ पद हैं।
बाँग्ला हिन्दी लिप्यन्तरण के साथ
জনগণমন-অধিনায়ক জয় হে ভারতভাগ্যবিধাতা!
পঞ্জাব সিন্ধু গুজরাট মরাঠা দ্রাবিড় উত্কল বঙ্গ
বিন্ধ্য হিমাচল যমুনা গঙ্গা উচ্ছলজলধিতরঙ্গ
তব শুভ নামে জাগে, তব শুভ আশিস মাগে,
গাহে তব জয়গাথা।
জনগণমঙ্গলদায়ক জয় হে ভারতভাগ্যবিধাতা!
জয় হে, জয় হে, জয় হে, জয় জয় জয়, জয় হে॥
| जॉनोगॉनोमोनो-ओधिनायोको जॉयॉ हे भारोतोभाग्गोबिधाता!
पॉन्जाबो शिन्धु गुजोराटो मॉराठा द्राबिड़ो उत्कॉलो बॉङ्गो,
बिन्धो हिमाचॉलो जोमुना गॉङ्गा उच्छॉलोजॉलोधितोरोङ्गो,
तॉबो शुभो नामे जागे, तॉबो शुभ आशिश मागे,
गाहे तॉबो जॉयोगाथा।
जॉनोगॉनोमोङ्गोलोदायोको जॉयॉ हे भारोतोभाग्गोबिधाता!
जॉयो हे, जॉयो हे, जॉयो हे, जॉयो जॉयो जॉयो, जॉयो हे॥
|
हिन्दी
जन-गण-मन अधिनायक जय हे,
भारत-भाग्य-विधाता ।
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा,
द्राविड़ उत्कल बंग ।
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा,
उच्छल जलधि तरंग ।
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष माँगे;
गाहे तव जय गाथा ।
जन-गण मंगलदायक जय हे,
भारत-भाग्य-विधाता ।
जय हे ! जय हे !! जय हे !!!
जय ! जय ! जय ! जय हे !!
राष्ट्र गान के बाद वाले पद
अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी ।
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक, मुसलमान ख्रिस्तानी ।
पूरब पश्चिम आसे, तव सिंहासन पाशे; प्रेमहार जय गाँथा।
जन-गण-ऐक्य-विधायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता ।
जय हे, जय हे, जय हे,जय जय जय, जय हे ।।
पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पन्था, युग-युग-धावित यात्री ।
हे चिर सारथि,तव रथचक्रे, मुखरित पथ दिन रात्री ।
दारुण विप्लव-माझे, तव शंखध्वनि बाजे, हे संकटदुःखत्राता ।
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे,भारत-भाग्य-विधाता ।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे ।।
घोर तिमिरघन निविड् निशीथे, पीङित मूर्च्छित देशे ।
जागृत छिल तव अविचल मंगल,नत नयने अनिमेषे ।
दुःस्वप्ने आतंके, रक्षा करिले अंके, स्नेहमयी तुमि माता ।
हे जन-गण-दुःखत्रायक जय हे, भारत-भाग्य-विधाता ।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे ।।
रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि, पूर्ब-उदयगिरिभाले ।
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण, नवजीवनरस ढाले ।
तव करुणारुणरागे, निद्रित भारत जागे, तव चरणे नत माथा ।
जय जय जय हे, जय राजेश्वर !! भारत-भाग्य-विधाता ।
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे ।।
रोचक तथ्य
रवीन्द्रनाथ ठाकुर विश्व के एकमात्र व्यक्ति हैं, जिनकी रचना को एक से अधिक देशों में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है। उनकी एक दूसरी कविता
आमार सोनार बाँग्ला को आज भी
बाँग्लादेश में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है। और इससे अधिक मजेदार बात यह है कि बाँग्लादेश के इस राष्ट्रगान को संगीत प्रदान करने वाला व्यक्ति एक नेपाली है।
ऐतिहासिक तथ्य
मदन लाल वर्मा 'क्रान्त' की पुस्तक
स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास (भाग-एक)
ISBN 8177831224(Set) की पृष्ठ संख्या १५० पर
भारत भाग्य विधाता शीर्षक से
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का पूरा गीत इस तथ्यात्मक टिप्पणी के साथ दिया गया है- "भारत के मुक्ति संग्राम में सन् १९११ का वर्ष राजनीतिक दृष्टि से सभी के लिये हर्ष का विषय था क्योंकि इसी वर्ष इंग्लैण्ड से
जार्ज पंचम हिन्दुस्तान आये थे। बंग-भंग का निर्णय रद्द हुआ था जिसके कारण भारतीयों में अंग्रेजों के न्याय के प्रति विश्वास पैदा हुआ। साहित्यकार भी इससे अछूते नहीं रहे।
बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' ने जार्ज पंचम की स्तुति में
सौभाग्य समागम,
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने
शुभ स्वागत,
श्रीधर पाठक ने
श्री जार्ज वन्दना तथा
नाथूराम शर्मा 'शंकर' ने
महेन्द्र मंगलाष्टक जैसी हिन्दी में उत्कृष्ट भक्तिभाव की रचनायें लिखकर
राजभक्ति प्रदर्शित की थी। फिर भला रवीन्द्रनाथ ठाकुर कैसे पीछे रहते! उन्होंने १९११ में
भारत भाग्य विधाता गीत की रचना की। बाद में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने
सर की उपाधि दी। यह अलग बात है कि १९१९ में
जलियाँवाला बाग काण्ड से दुःखी होकर उन्होंने वह उपाधि वापिस लौटा दी।"
विवाद
क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया जा सकता है अथवा नहीं? यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोए एम्मानुएल वर्सेस केरल राज्य AIR 1987 SC 748 [3] नाम के एक वाद में उठाया गया। इस वाद में कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिये निकाल दिया गया था क्योंकि इन्होने राष्ट्र-गान जन-गण-मन को गाने से मना कर दिया था। यह विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्र-गान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इसका सम्मान करते थे पर गाते नहीं थे। गाने के लिये उन्होंने मना कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी याचिका स्वीकार कर इन्हें स्कूल को वापस लेने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र-गान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
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